जीवन नदिया बह रही थी
शांत और निस्स्पंद,
बीत जाता था हर दिन
नीरव निश्-शब्द ।
दूर कहीं पर गूंजती थी
तान मदिर वंशी की,
टेरती थी प्राण-प्रिया को
साज मधुर पी की।
आत्मा का प्रबल आह्वान,
गूंजता बन सुमधुर तान।
विकल हुए मन प्राण प्रिया के,
शिथिल हुए बंधन जीवन के।
मन पाखी ने पर फैलाये,
पुलक उठी तब दशों दिशाएं।
अवनि और अम्बर हैं हर्षित,
आज हुआ कण-कण है स्पंदित।
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3 comments:
waah! waah again :)
badhiya hai ye bhi aunty... bas bhavarth samajh nahi aaya :)
It is about the moment of inspiration in life, it can't be explained ,it has to be felt.suppose things are hazy ,or not so clear, and suddenly a ray of light comes and everything starts taking shape, life becomes meaningful....the poem is about that moment of a person's life.
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