क्यूँ आए मेरे जीवन में?
क्यूँ देनी चाही थी खुशियाँ?
भाव-पुष्प का अर्घ्य दिया क्यूँ?
आशा का संचार किया क्यूँ?
निस्संग जीवन था बीत चला,
चिर दुःख था जीवन-साथी।
भोर-किरण संदेश न लाती,
सांझ सदा यूँ ही ढल जाती।
तेरे आने से जीवन में
खुशियों ने पहचान बना ली,
इन नयनों ने हँसना सीखा,
प्राणों ने श्रृंगार किया।
बिखरेंगे जब स्वप्निल इन्द्रधनु,
कैसे धीर धरुँगी प्रियतम?
पुनः एकाकी जीवन से अब,
किस विध प्रीत करुँगी प्रियतम?
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5 comments:
waah. waah waah. Kya heart-breaking poem hai!
was written almost fifteen yrs ago but i still remember that moment.:)
Auntie, that was fabulous! And it read somewhat like a Bong poem. :-)
Bahut achi poem thi aunty.
Mein Animesh bhaiya ka junior tha IT-BHU mein :). Ghoomte firte pahunch gaya is jagah.. Poem achi thi to appreciate kare bina jaane ka mann nahi hua :)
Dil chu liya kavita ne.Kya pakad hai emotions per.Too good.
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