Wednesday, December 30, 2009

बस तुम ही तुम

अन्तस की पीड़ा में तुम हो,
प्राणों का आलोड़न भी तुम।
जीवन की मधुरिम तानों में तुम,
अश्रु-कणों में उद्भाषित तुम।

उर में तुम ही, प्राणों में तुम,
नयनों की वाणी में तुम हो,
मेरे जीवन की दीप-शिखा तुम,
तुम हो मेरे प्राण-सुमन।

अर्थ दिया तुमने जीवन को,
तुमने ही आकार दिया।
जीवन के कण-कण में बसकर,
सपनों को आधार दिया।

पुष्पित- सुरभित इस जीवन के,
कण-कण में अब प्यार बसा।
जिसकी दिव्य आभा में धुलकर,
जगमग सब संसार हुआ।

1 comment:

seema jyotishi said...

Correct uses of words and honest feeling of heart is very much evident in your poetry
Keep writing.