Monday, December 28, 2009

एक बार फिर.

एक बार जो फिर तुम आते !
स्नेह-घृत की बाती बन मैं,
मन-मंदिर के दीप जलाती!
तेरी राहों के कांटे चुन,
स्वयं पुष्प बन मैं बिछ जाती।

एक बार जो फिर तुम आते !
जूही की अनगिन कलियों से,
द्वारे बंदनवार सजाती।
तेरे क्लांत चरण-युगलों को,
अश्रु-जल से मैं पखारती।

एक बार जो फिर तुम आते!
मृणाल-दंड सी इन बाँहों का,
कंठ-हार तुझको पहनाती।
अपनी प्रीति के दृढ-पाश में,
तुझे बाँध मैं वारी जाती।

एक बार यदि फिर तुम आते !

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