अन्तस की पीड़ा में तुम हो,
प्राणों का आलोड़न भी तुम।
जीवन की मधुरिम तानों में तुम,
अश्रु-कणों में उद्भाषित तुम।
उर में तुम ही, प्राणों में तुम,
नयनों की वाणी में तुम हो,
मेरे जीवन की दीप-शिखा तुम,
तुम हो मेरे प्राण-सुमन।
अर्थ दिया तुमने जीवन को,
तुमने ही आकार दिया।
जीवन के कण-कण में बसकर,
सपनों को आधार दिया।
पुष्पित- सुरभित इस जीवन के,
कण-कण में अब प्यार बसा।
जिसकी दिव्य आभा में धुलकर,
जगमग सब संसार हुआ।
Wednesday, December 30, 2009
Monday, December 28, 2009
एक बार फिर.
एक बार जो फिर तुम आते !
स्नेह-घृत की बाती बन मैं,
मन-मंदिर के दीप जलाती!
तेरी राहों के कांटे चुन,
स्वयं पुष्प बन मैं बिछ जाती।
एक बार जो फिर तुम आते !
जूही की अनगिन कलियों से,
द्वारे बंदनवार सजाती।
तेरे क्लांत चरण-युगलों को,
अश्रु-जल से मैं पखारती।
एक बार जो फिर तुम आते!
मृणाल-दंड सी इन बाँहों का,
कंठ-हार तुझको पहनाती।
अपनी प्रीति के दृढ-पाश में,
तुझे बाँध मैं वारी जाती।
एक बार यदि फिर तुम आते !
स्नेह-घृत की बाती बन मैं,
मन-मंदिर के दीप जलाती!
तेरी राहों के कांटे चुन,
स्वयं पुष्प बन मैं बिछ जाती।
एक बार जो फिर तुम आते !
जूही की अनगिन कलियों से,
द्वारे बंदनवार सजाती।
तेरे क्लांत चरण-युगलों को,
अश्रु-जल से मैं पखारती।
एक बार जो फिर तुम आते!
मृणाल-दंड सी इन बाँहों का,
कंठ-हार तुझको पहनाती।
अपनी प्रीति के दृढ-पाश में,
तुझे बाँध मैं वारी जाती।
एक बार यदि फिर तुम आते !
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